राजस्थान के पूर्वी भाग में स्थित सवाई माधोपुर जिला न केवल अपने ऐतिहासिक किलों और रणथंभौर टाइगर रिजर्व के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह क्षेत्र कृषि की दृष्टि से भी अत्यंत समृद्ध है। यहां की अधिकांश जनसंख्या प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से खेती पर निर्भर है। जिले की जलवायु, मिट्टी और मौसमी परिस्थितियाँ कृषि के लिए अनुकूल हैं, किंतु सीमित सिंचाई संसाधनों के कारण फसल चयन बहुत सोच-समझ कर किया जाता है।
इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि सवाई माधोपुर में वर्ष के अलग-अलग मौसमों में कौन-कौन सी फसलें बोई जाती हैं, उनके लिए उपयुक्त मिट्टी व सिंचाई की क्या स्थिति है, और कौन-सी फसलें किसानों के लिए अधिक लाभकारी सिद्ध हो सकती हैं।
जिले की भौगोलिक, सामाजिक और जलवायु विशेषताएँ
सवाई माधोपुर राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित है। यहां की जलवायु अर्ध-शुष्क है। गर्मियों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है, जबकि सर्दियों में यह 6-8 डिग्री तक गिर जाता है। यहां औसतन 650 से 700 मिमी वर्षा होती है, जो मुख्य रूप से मानसून के दौरान जुलाई से सितंबर के बीच होती है।
मिट्टी के प्रकार की बात करें तो यहां काली मिट्टी (रेगुर) और बलुई दोमट मिट्टी प्रमुख हैं। काली मिट्टी कपास, बाजरे के लिए उपयुक्त है जबकि बलुई दोमट मिट्टी गेहूं, चना और सरसों जैसी रबी फसलों के लिए बेहतर होती है।
जिले की प्रमुख आर्थिक गतिविधियाँ
सवाई माधोपुर जिले की प्रमुख आर्थिक धुरी कृषि है, किंतु पारंपरिक उद्योगों और पर्यटन का भी अहम स्थान है। एक समय पर यहां एशिया की दूसरी सबसे बड़ी सीमेंट फैक्ट्री संचालित होती थी, लेकिन अब पर्यावरणीय कारणों से बड़े उद्योगों की संख्या सीमित है।
अमरूद की खेती इस जिले की एक बड़ी पहचान बन चुकी है। स्थानीय कृषि वैज्ञानिकों और किसानों के साझा प्रयासों से यहां अमरूद की उन्नत खेती होती है, जिससे सालाना व्यापार 3 से 5 अरब रुपये तक पहुंच चुका है। इससे जिले में बागवानी आधारित कृषि का प्रचलन भी तेजी से बढ़ा है।
खरीफ की फसलें: जून से अक्टूबर का मौसम
खरीफ का मौसम सवाई माधोपुर में खेती का मुख्य काल माना जाता है, क्योंकि यह सीधे-सीधे मानसून की वर्षा पर निर्भर करता है। इस मौसम में बोई जाने वाली प्रमुख फसलें निम्नलिखित हैं:
बाजरा – यह जिले की सबसे प्रमुख खरीफ फसल है। बाजरा कम पानी में भी अच्छी उपज देता है, जिससे यह यहां के किसानों के लिए लाभदायक सिद्ध होता है। इसकी खेती खासकर काली मिट्टी वाले क्षेत्रों में की जाती है।
मूंगफली – मूंगफली की खेती रेतीली मिट्टी वाले इलाकों में होती है। यह तेल उत्पादन के लिए प्रयोग की जाती है और इसके पौधे मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में भी सहायक होते हैं।
मक्का – मक्का बहुउपयोगी फसल है, जिसका उपयोग पशु चारे, खाद्य पदार्थों और प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में होता है। यह भी मानसून आधारित फसल है, जिसे किसान सीमित सिंचाई साधनों के साथ भी उगा सकते हैं।
सोयाबीन – यह फसल अब धीरे-धीरे सवाई माधोपुर में लोकप्रिय होती जा रही है, क्योंकि इसकी बाजार मांग बहुत अधिक है। विशेष रूप से वे किसान जो जैविक खेती की ओर बढ़ना चाहते हैं, उनके लिए यह एक अच्छा विकल्प बनता जा रहा है।
दालें – उड़द और मूंग जैसी दलहन फसलें भी खरीफ में उगाई जाती हैं। इनका लाभ यह है कि ये जमीन में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाकर अगली फसल के लिए मिट्टी को तैयार करती हैं।
रबी की फसलें: नवंबर से मार्च
मानसून के समाप्त होने के बाद रबी सीजन की शुरुआत होती है, जो सर्दियों का मौसम होता है। इस मौसम में सिंचाई का विशेष महत्व होता है, क्योंकि बारिश बहुत कम होती है।
गेहूं – यह रबी मौसम की मुख्य फसल है। गेहूं की खेती में अधिक सिंचाई और अच्छी तैयारी की आवश्यकता होती है। जिले में कुछ स्थानों पर उन्नत किस्में जैसे HD-2967 और WH-1105 का उपयोग हो रहा है, जिनसे उच्च उत्पादन संभव है।
चना – चना सवाई माधोपुर के किसानों के लिए एक कम लागत और अधिक लाभ देने वाली फसल है। इसे विशेष देखभाल की आवश्यकता नहीं होती और यह सीमित पानी में भी अच्छी उपज देता है।
सरसों – सरसों की खेती का चलन भी लगातार बढ़ रहा है। यह फसल ठंडी जलवायु में अच्छी होती है और सरकार द्वारा इसके समर्थन मूल्य को भी लगातार बढ़ाया जा रहा है, जिससे किसानों को लाभ मिल रहा है।
जौ – यह पारंपरिक रबी फसल है जो कम उर्वरता वाली भूमि में भी उगाई जा सकती है। इसका उपयोग पशु चारे और बीयर इंडस्ट्री में होता है।
वैकल्पिक और नकदी फसलें
कई किसान अब पारंपरिक फसलों से हटकर नकदी फसलों और उद्यानिकी की ओर भी बढ़ रहे हैं। विशेष रूप से वे किसान जिनके पास थोड़ी भूमि है, वे सब्ज़ियाँ, प्याज, लहसुन और औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं।
प्याज और लहसुन की खेती किसानों को तात्कालिक लाभ देती है, लेकिन इसमें बाजार भाव का बड़ा उतार-चढ़ाव होता है। वहीं अश्वगंधा, सौंफ, एलोवेरा जैसे औषधीय पौधों की मांग अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बढ़ रही है।
सिंचाई की स्थिति
सिंचाई के संसाधनों की बात करें तो जिले में नलकूप, तालाब, कुएं और कुछ क्षेत्रों में नहर प्रणाली मौजूद है। राज्य सरकार द्वारा ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणालियों पर सब्सिडी दी जा रही है, जिससे किसान कम पानी में भी अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।
किसानों के लिए सुझाव
सवाई माधोपुर के किसानों को जलवायु और संसाधनों को ध्यान में रखते हुए फसल चक्र अपनाना चाहिए, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहे। साथ ही समय-समय पर मिट्टी की जांच करवाकर उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। जो किसान सरकारी योजनाओं से जुड़ते हैं, जैसे पीएम किसान सम्मान निधि, कृषि यंत्र सब्सिडी योजना, फसल बीमा योजना आदि, उन्हें खेती में काफी सहायता मिलती है।
सवाई माधोपुर में कृषि की संभावनाएं प्रचुर मात्रा में हैं, बशर्ते किसान मौसम, मिट्टी और संसाधनों के अनुसार अपनी खेती की योजना बनाएं। मौसमानुकूल फसलें अपनाकर, वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग कर और सरकारी योजनाओं का लाभ लेकर वे न केवल अपनी उपज बढ़ा सकते हैं, बल्कि आर्थिक रूप से भी आत्मनिर्भर बन सकते हैं।