रणथंभौर में एक बार फिर बाघ के हमले ने पूरे इलाके में चिंता की लहर दौड़ा दी है। त्रिनेत्र गणेश मंदिर के मार्ग पर हुई इस दुखद घटना में 7 वर्षीय बालक कार्तिक सुमन की जान चली गई। यह रास्ता श्रद्धालुओं और पर्यटकों दोनों के लिए पवित्र और लोकप्रिय है, लेकिन अब यह इलाका जानलेवा साबित हो रहा है।
घटना का विवरण
कार्तिक सुमन, जो बूंदी जिले के देई खेड़ा गांव से आया था, अपनी दादी के साथ त्रिनेत्र गणेश मंदिर के दर्शन कर लौट रहा था। उसी दौरान अचानक जंगल से एक टाइगर निकल आया और बच्चे को जबड़े में दबोच कर जंगल की ओर ले गया। टाइगर बच्चे को लेकर काफी देर तक जंगल में बैठा रहा और गर्दन पर पंजा टिकाए रखा। वन विभाग की जानकारी के अनुसार हमला करने वाला बाघ टी-84 (एरोहेड) की मादा संतान (फीमेल शावक) थी, जिसकी उम्र लगभग 23-24 महीने बताई जा रही है।
पहले भी कर चुका है हमला
यह वही शावक है जो कुछ महीने पहले एक पर्यटक पर भी हमला कर चुका है। हालांकि उसने उस पर्यटक को गंभीर चोट नहीं पहुंचाई थी, लेकिन यह स्पष्ट है कि उसका व्यवहार असामान्य हो चुका है। विशेषज्ञों का मानना है कि अब उसकी लगातार निगरानी होनी चाहिए और यदि उसमें सुधार नहीं दिखे तो उसे किसी घने जंगल में स्थानांतरित किया जाना चाहिए, जहां इंसानी संपर्क न्यूनतम हो।
श्रद्धालुओं के लिए असुरक्षित रास्ता
रणथंभौर का त्रिनेत्र गणेश मंदिर मार्ग, जो गणेश धाम से किले तक जाता है, लगभग ढाई से तीन किलोमीटर लंबा है। यह मार्ग पूरी तरह से क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट (CTH) क्षेत्र में आता है, जहां बाघ-बाघिनों और उनके शावकों की निरंतर आवाजाही होती है। फिलहाल इस मार्ग पर टी-84, टी-124 (रिद्धि), टी-107 (सुल्ताना), टी-39 (नूर) और टी-120 सहित कुल 14 टाइगर्स और उनके शावकों का मूवमेंट रिकॉर्ड किया गया है।
वन्यजीव विशेषज्ञों की राय
वन्यजीव विशेषज्ञ यादवेंद्र सिंह और डॉ. धर्मेंद्र खांडल ने चेताया है कि इस क्षेत्र में पैदल जाना अत्यंत खतरनाक है। उनका मानना है कि बाघ आमतौर पर समूह में चल रहे लोगों पर हमला नहीं करता, लेकिन एक या दो व्यक्ति हों तो हमला करने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। डॉ. खांडल का कहना है कि शावक अभी किशोरावस्था में है और उसका व्यवहार अभी पूरी तरह से स्थिर नहीं है। ऐसे में उसका व्यवहारिक अध्ययन और निरंतर मॉनिटरिंग आवश्यक है।
सुरक्षा के लिए समाधान क्या हो?
2019 में स्थानीय सलाहकार समिति (LAC) में श्रद्धालुओं के लिए लोकल ट्रॉम (छोटी ट्रेन) चलाने का प्रस्ताव रखा गया था, जिसे स्थानीय नेताओं और वन विभाग का समर्थन भी मिला। 2021 में यह भी तय किया गया कि श्रद्धालुओं को पैदल मंदिर तक न भेजा जाए। हालांकि अभी तक इन प्रस्तावों पर अमल नहीं हो पाया है।
वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट मुकेश सीट का कहना है कि यदि समय रहते ट्रैकिंग और निगरानी व्यवस्था मजबूत नहीं की गई, तो ऐसी घटनाएं दोबारा हो सकती हैं। उनका सुझाव है कि पूरे मार्ग पर कैमरा ट्रैकिंग, ड्रोन निगरानी, और निश्चित अंतराल पर गार्ड्स की तैनाती की जाए।
रणथंभौर जैसे संरक्षित वन क्षेत्र में इंसान और वन्यजीवों के बीच टकराव की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। श्रद्धालुओं की आस्था और बाघों का प्राकृतिक अधिकार, दोनों ही एक-दूसरे से टकरा रहे हैं। अब जरूरत इस बात की है कि सुरक्षित व्यवस्था तैयार की जाए, जिससे श्रद्धालु भी अपनी भक्ति पूरी कर सकें और बाघों का प्राकृतिक वातावरण भी सुरक्षित रहे।